पैनिक बटन मामले में एसीबी को केस दर्ज करने की अनुमति जल्द, कंपनी के अधिकारियों को बनाया जाएगा आरोपी
दिल्ली-एनसीआर
एसीबी ने इस मामले में विजिलेंस सचिव को पत्र लिखकर अनुमति मांगी है। एसीबी अधिकारियों का कहना है कि अनुमति मिलने के बाद जांच आगे बढ़ाने के लिए परिवहन विभाग के अधिकारियों, वाहनों में पैनिक बटन व जीपीएस लगाने वाली कंपनी के अधिकारियों पर केस दर्ज होगा। महिलाओं की सुरक्षा के लिए डीटीसी, कलस्टर बसों व टैक्सियों-ऑटो में पैनिक बटन और जीपीएस लगाने के कथित घोटाले मामले में भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) को जल्द मुकदमा दर्ज करने की अनुमति मिल सकती है। एसीबी ने इस मामले में विजिलेंस सचिव को पत्र लिखकर अनुमति मांगी है। एसीबी अधिकारियों का कहना है कि अनुमति मिलने के बाद जांच आगे बढ़ाने के लिए परिवहन विभाग के अधिकारियों, वाहनों में पैनिक बटन व जीपीएस लगाने वाली कंपनी के अधिकारियों पर केस दर्ज होगा। अधिकारियों के मुताबिक, भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम में यह प्रावधान है कि किसी भी सरकारी विभाग के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले विजिलेंस सचिव से अनुमति लेनी होती है। विजिलेंस सचिव परिवहन विभाग से उक्त मामले में जानकारी लेते हैं। जानकारी मिलने पर तथ्यों की जांच होती है। इसके बाद अनुमति दी जाती है। सूत्रों का कहना है कि अनुमति देने से पहले की जाने वाली सारी प्रक्रिया लगभग पूरी कर ली गई हैं। ऐसे में एसीबी अधिकारियों का मानना है कि एफआईआर दर्ज करने की अनुमति जल्द मिलेगी। बता दें कि जून में पैनिक बटन के मामले में खामियां सामने आने पर उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने एसीबी को डीटीसी, क्लस्टर बसों, टैक्सियों और आटो में लगे पैनिक बटन का ऑडिट करने के निर्देश दिए थे। ऑडिट में भारी अनियमितता पाई गई थी। पैनिक बटन पुलिस कंट्रोल रूम से नहीं था कनेक्ट ऑडिट में पता चला कि 112 (पुलिस के कमांड और कंट्रोल रूम) नंबर से पैनिक बटन कंट्रोल रूम की कोई कनेक्टिविटी नहीं थी, जिस कारण तीन साल में एक भी कॉल पुलिस कंट्रोल रूम को नहीं आई। अधिकारियों का कहना है कि सरकार द्वारा दावा किया जाता रहा कि सभी बसों में पैनिक बटन व सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। करीब 5500 बसों में पैनिक बटन जैसे डिवाइस लगाए गए थे जिनमें वर्तमान में चार हजार से अधिक बसें सड़कों पर चल रही हैं। बसों में डिवाइस लगाने के लिए एक कंपनी को 95 करोड़ का भुगतान भी किया गया। इसके अलावा 3000 रुपये प्रति माह प्रति बस के देखरेख पर अलग से खर्च किया जा रहा है, लेकिन महिलाओं को इससे कोई फायदा न होने पर सारा खर्च बेकार जा रहा है। नियंत्रण कक्ष नहीं कर रहा था काम ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया कि दिल्ली इंटीग्रेटेड मल्टी-मोडल ट्रांजिट सिस्टम लिमिटेड (डीआइएमटीएस) में पैनिक बटन अलार्म की निगरानी के लिए कश्मीरी गेट बस अड्डे में बनाया नियंत्रण कक्ष काम नहीं कर रहा था। बसों में जो सीसीटीवी लगाए गए हैं उसे मॉनिटर करने के लिए 41 सेंटर तो बना दिए गए, लेकिन उनमें एक में भी कर्मचारी नहीं था। सीसीटीवी भी अधिकतर खराब पाए गए। एसीबी ने बसों के ड्राइवरों के साथ रेंडम परीक्षण कॉल की थी जिसमें बसों के वॉकी-टॉकी के साथ रेडियो सेट की कनेक्टिविटी भी नहीं पाई गई थी।