वाराणसी में श्री गुरूनानक देव जी महाराज जी का प्रकाशोत्सव बडी धूम-धाम व उल्लास से मनाया गया

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वाराणसी में श्री गुरूनानक देव जी महाराज जी का प्रकाशोत्सव बडी धूम-धाम व उल्लास से मनाया गया

27 नवम्बर :काशी में सिक्ख धर्म के संस्थापक एंव जगत गुरु श्री गुरूनानक देव जी महाराज जी का 554वाँ प्रकाशोत्सव (गुरूपर्व) अलौकिक मान्यता के साथ विशेष उत्साह, जोश एवं श्रद्धा भाव के साथ गुरूबाग स्थित गुरुद्वारा में मनाया गया। इस पर्व पर गुरुद्वारे को झालरों व फूलो की मालाओ से भव्य तरीके से सजाया गया। इस विशेष पर्व पर की गई सजावट, पानी के फव्वारे, फूलों के पौधे एवं बेहद रौशनी से नहाया पूरा प्रागंण आकर्षण का केन्द्र रहा। देव दीपावली पर गुरुद्वारे में शाम 5:15 बजे दीपोत्सव हुआ। देव दीपावली गुरूनानक देव जी महाराज के 554वें प्रकाशपर्व को समर्पित। प्रकाशोत्सव के उपलक्ष्य में विभिन्न घाटों पर बैनर लगाए गये। र्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली को वाराणसी में छटा बहुत ही निराली होती है चारो ओर भक्ति, प्रकाश एंव खुशियों का सरोबार रहा।कार्यकम की शुरूआत 27 नवम्बर को प्रातः 3.45 से शहाना स्वागत गुरूघर की संगत ने फूलो की वर्षा कर, नाम सिमरन, पाठ सुखमनी साहिब, आसा दी वार कीर्तन, प्रातः 9:00 बजे से 10:00 बजे तक गुरुनानक इंग्लिश मीडियम स्कूल गुरूबाग, गुरूनानक खालसा बालिका इण्टर कालेज, गुरूबाग एवं गुरूनानक इंग्लिश स्कूल शिवपुर की छात्रायें शबद गायन कर संगत को निहाल किया। प्रातः 10:00 बजे से गुरूद्वारे के मुख्य ग्रन्थी भाई रंजीत सिंह जी कथा द्वारा संगत को निहाल किया। प्रातः 11:00 बजे से 12:30 बजे तक भाई अमनदीप सिंह जी व दोपहर 12:30 बजे से 2:00 बजे तक भाई जगतार सिंह जी शबद कीर्तन द्वारा संगत को निहाल कियासाथ ही साथ गुरू का अटूट लंगर भी बरताया गया।सांयकाल कार्यकम समय 7.30 बजे से लेकर रात्रि 1:00 बजे तक कार्यकम चलेगा जिसमें पंथ के महान हजूरी रागी- श्री दरबार साहिब वाले भाई अमनदीप सिंह जी व भाई जगतार सिंह जी जम्मू वाले व गुरूद्वारे के रागी जत्था भाई नरिन्दर सिंह जी शबद कीर्तन द्वारा संगत को निहाल किया। पाठ साहिब की समाप्ति, अरदास साथ ही साथ गुरु का अटूट लंगर बरताया गया। गुरूद्वारे के मुख्य ग्रन्थी भाई रंजीत सिंह जी एवं ग्रन्थी महंत सिंह जी ने गुरूद्वारे में उपस्थित सभी साध संगत व श्रद्धालुओं को धन्यवाद दिया व शुकाना अदा किया। भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होकर गुरूघर में मत्था टेका व गुरू घर की खुशियाँ प्राप्त की।

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