गणाचार्य विरागसागर महामुनिराज समाधिस्थ,  जैन जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति

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गणाचार्य विरागसागर महामुनिराज समाधिस्थ,  जैन जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति
ललितपुर। राष्ट्रसंत बुन्देलखण्ड गौरव गणाचार्य विरागसागर महामुनिराज की महासमाधि जालना महाराष्ट के निकट होने पर समूचे जैन समाज में शोक  है आचार्य श्री ने 300 से अधिक मुनि आर्यिका माता जी को दीक्षित कर जैन धर्म की अपूर्व प्रभावना की और श्रावकों को संयम का मार्ग प्रशस्त किया। गणाचार्य विरागसागर महामुनिराज अपने संघ के सहित इन दिनों पद विहार करते हुए महाराष्ट के औरंगाबाद जिले अन्तर्गत जालना गांव में पहुंचे जहां उनका अचानक स्वास्थ प्रतिकूल हुआ उनकी समाधि हो गई। जैसे ही खबर समाज को हुई दूरांचलों से श्रावक-श्राविकाओं का अन्तिम दर्शनार्थ पहुंचना प्रारम्भ हुआ और जैन संत आचार्य विराग सागर महामुनिराज की समाधि डोला में सम्मलित हुए और अपने गुरू को नमन किया। फरवरी 24 में प्रख्यात जैन संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर महामुनिराज की समाधि के बाद जुलाई में प्रभावक संत गणाचार्य विरागसागर महामुनिराज की समाधि से जैन समाज स्तब्ध है। गणाचार्य महामुनिराज की की समाधि पर अनेकों संतों ने अपनी विन्यांजलि अर्पित करते हए उनके उत्कृष्ट संयम को जैन जगत के लिए गौरव बताया। गणाचार्य विरागसागर महामुनिराज ने जैन आगम सम्मत समाधि से पहले संघ, आचार्य पद का त्याग कर पटटाचार्य के लिए चर्या शिरोमणि श्री विशुद्ध सागर महामुनिराज को घोषित किया। जिस दिन समाधि हुई उस दिन दिन आहार का चारों प्रकार का प्रत्यखयां कर चर्या का निर्वाहन किया और प्रतिकमण गुरुभक्ति संघ के साथ की। शाम की सामायिक स्वाध्याय कर अर्द्ध रात्रि के समय बार बार नमोकर का जाप करते रहे और सामायिक पर बैठे समाधिस्थ हुए।मीडिया प्रभारी अक्षय अलया के अनुसार गणाचार्य विराग सागर महामुनिराज का ग्रहस्थ जीवन मध्यप्रदेश के दमोह जिला के पथरिया ग्राम में बीता। 2 मई 1963 को पथरिया में कपूरचंद जैन श्रीमती श्यामदेवी की कोख से जन्मे अरविन्द कुमार जैन ने जीवन में संयम का मार्ग धारण किया 9 दिसम्बर 1983 को औरंगावाद महाराष्ट में आचार्य श्री विमलसागर महाराज से मुनि दीक्षा धारण की। सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरि जिला छतरपुर में 8 नबम्बर 1992 को आचार्य पद प्रदान किया गया और महान संघ के महानायक बने। अनेक साधकों को मुनि आर्यिका एलक, क्षुल्लक क्षुल्लिका दीक्षाए प्रदान की अनेक श्रावकों को अन्तिम समय सम्बोधन देकर सन्मार्ग प्रशस्त किया। अपने उपसंघों में साधुओं को व्यवस्थित कर प्रभावक श्रमण मुनि श्री विशुद्धसागर, मुनि श्री विमर्श सागर, मुनि श्री विशद सागर, मुनि श्री विभव सागर, मुनि विहर्श सागर, मुनि श्री विनिश्चय सागर, मुनि विमद सागर महाराज को आचार्य पद प्रदान किया जो समूचे देश में जैन धर्म की प्रभावना कर श्रावकों को जैन धर्म का मर्म और संयम का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।

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