हाईकोर्ट की टिप्पणी, सियाचिन में महिला की तैनाती तो सेना में नर्स के पद पर पुरुषों की भर्ती क्यों नहीं

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हाईकोर्ट की टिप्पणी, सियाचिन में महिला की तैनाती तो सेना में नर्स के पद पर पुरुषों की भर्ती क्यों नहीं

दिल्ली-एनसीआर
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अगर दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन में एक महिला को तैनात किया जा सकता है तो सेना में नर्स के पद पर पुरुषों की भर्ती क्यों नहीं की जा सकती है। हाईकोर्ट ने सेना में पुरुषों को नर्स के रूप में नियुक्त करने से रोकने के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया। दिल्ली हाईकोर्ट ने सेना में पुरुषों को नर्स के रूप में नियुक्त करने से रोकने के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया है। अदालत ने कहा कि अगर दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन में एक महिला को तैनात किया जा सकता है तो सेना में नर्स के पद पर पुरुषों की भर्ती क्यों नहीं की जा सकती है। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा एवं न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने यह सवाल सैन्य नर्सिग सेवा अध्यादेश 1943 और सैन्य नर्सिग सेवा (भारत) नियम, 1944 को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उठाया है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि उसके प्रावधान ऐसे हैं जो केवल महिलाओं को भारतीय सैन्य नर्सिग सेवा में नियुक्त करता है। जो संविधान में दिए बराबरी के अधिकार का उल्लंघन है। केंद्र सराकर की ओर से अतिरिक्त सालिसिटर जनरल ऐर्या भाटी ने पीठ को बताया कि सरकार ने इस मामले में अपनी लिखित दलीलें दाखिल कर दी है। उन्होंने कहा कि सेना में यह प्रथा लंबे समय से चली आ रही परंपराओं पर आधारित है। आज ही सरकार महिलाओं को आरक्षण देने के लिए कानून लेकर आई है। पीठ ने कहा कि हां संसद में… एक तरफ आप महिलाओं को सशक्त बनाने की बात कर रहे है और दूसरी तरफ आप कह रहे हैं कि पुरुष नर्स के रूप में शामिल नहीं हो सकते। अगर एक महिला को सियाचिन में तैनात किया जा सकता है, तो एक पुरुष भी आर एंड आर में काम कर सकता है। पीठ ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अब महिलाओं को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में शामिल होने की अनुमति दे दी है। शीर्ष अदालत ने बार-बार यह भी माना है कि कोई लैंगिक पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिए। इस पर याचिकाकर्ता इंडियन प्रोफेशनल नर्सेज एसोसिएशन के वकील अमित जार्ज ने कहा कि पुरु षों को सेवा से रोकने वाला अध्यादेश और नियम औपनिवेशिक हैं। यह प्रथा फ्लोरेंस नाइटिंगेल के दृष्टिकोण पर आधारित है कि एक नर्स को कैसा होना चाहिए। अब हमारे पास सभी अस्पतालों में पुरुष नर्स हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस तरह की प्रथा एक खास लिंग को सेवाओं से वंचित करता है। इस दशा में उसका सैन्य पारिस्थितिकी तंत्र में कोई स्थान नहीं है। कोर्ट ने फिर कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिस पर विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है। उसने यह कहते हुए सुनवाई नवंबर के लिए स्थगित कर दी। याचिकाकर्ता ने वर्ष 2018 में उन नियमों को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन नियमों में कहा गया है कि सैन्य नर्सिग सेवा में केवल महिलाएं ही शामिल हो सकती हैं। उसने कहा है कि यह रूढ़िवादी दृष्टिकोण है। यह उन पुराने दृष्टिकोण पर आधारित है जब केवल महिलाओं को नर्स के रूप में प्रशिक्षित किया जाता था। अब ऐसे कई हजार पुरु ष हैं, जिन्होंने इस पेशे में प्रशिक्षण और योग्यता प्राप्त की है। इसलिए इससे संबंधित अध्यादेश और नियम भेदभाव परक है और संवैधानिक दृष्टिकोण के खिलाफ है।

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