मानवीय आदर्शों को कायम करने के लिए अपना बलिदान देने वाले श्री गुरु अर्जन देव जी की शहादत को नमन श्री गुरु अर्जन देव का जन्म सिख धर्म के चौथे गुरु, गुरु श्री रामदास जी व माता भानी जी के घर, गोइंदवाल (अमृतसर) में हुआ था। श्री गुरु अर्जन देव साहिब सिखों के 5 वें गुरु है। उन्होंने शिरोमणि, सर्वधर्म स सदभाव के प्रखर पैरोकार होने के साथ-साथ मानवीय आदर्शों को कायम रखने के लिए आत्म बलिदान करने वाले एक महान आत्मा थे। श्री गुरु अर्जन देव जी का विवाह (1579) में माता गंगा जी के साथ हुआ था। उनके यहां एक पुत्र हुआ, जिनका नाम श्री हरगोविंद सिंह जो सिखों के छठवें गुरु हैं। श्री गुरु अर्जुन देव जी ने अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी, जिसे आज स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है। श्री गुरु अर्जन देव जी की निर्मल प्रवृत्ति, सहृदयता, कर्तव्यनिष्ठता तथा धार्मिक एवं मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पण भावना को देखते हुए गुरु रामदासजी ने 1581 में पांचवें गुरु के रूप में उन्हें गुरु गद्दी पर सुशोभित किया। इस दौरान उन्होंने श्री गुरुग्रंथ साहिब का संपादन किया, जो मानव जाति की सबसे बड़ी देन है। संपूर्ण मानवता में धार्मिक सौहार्द पैदा करने के लिए अपने पूर्ववर्ती गुरुओं की वाणी को जगह-जगह से एकत्र कर उसे धार्मिक ग्रंथ में बांटकर परिष्कृत किया। गुरुजी ने स्वयं की उच्चारित 30 रागों में 2,218 शबदों को भी श्री गुरुग्रंथ साहिब में दर्ज किया है। एक दिन श्री गुरु अर्जन देव जी के मन में विचार आया, कि सभी गुरुओं की बानी का संकलन कर एक ग्रंथ बनाना चाहिए। जल्द ही उन्होंने इस पर अमल शुरू कर दिया। उस समय नानक वाणी की मूल प्रति गुरु अर्जन के मामा मोहनजी के पास थी। श्री गुरु अर्जन देव जी स्वयं उनके घर पहुंच गए। मोहनजी बोले- बेटा, नानक वाणी की मूलप्रति में तुम्हे ही दूंगा, क्योंकि तुम्हीं उसे लेने के सही पात्र हो। इसके बाद श्री गुरु अर्जन देव जी ने सभी गुरुओं की वाणी और अन्य धर्मों के संतों के भजनों को संकलित कर एक ग्रंथ बनाया, जिसका नाम रखा ‘ग्रंथसाहिब’ और उसे हरमंदिर साहिब में स्थापित करवाया। अपने ऐसे पवित्र वचनों से दुनिया को उपदेश देने वाले श्री गुरु अर्जन देव जी का मात्र 43 वर्ष का जीवनकाल अत्यंत प्रेरणादायी रहा। सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ भी वे डंटकर खड़े रहे। वे आध्यात्मिक चिंतक एवं उपदेशक के साथ ही समाज सुधारक भी थे। गुरु अर्जन देव जी ने ‘तेरा कीआ मीठा लागे, हरि नाम पदारथ नानक मागे’ शबद का उच्चारण करते हुए सन् 1606 में अमर शहीदी प्राप्त की। अपने जीवन काल में गुरुजी ने धर्म के नाम पर आडंबरों और अंधविश्वास पर कड़ा प्रहार किया। आध्यात्मिक जगत में गुरु जी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।