मंदी से जूझ रहे भारतीय कालीन उद्योग को चाहिए प्रोत्साहन राशि की जरूरत
सरकार जूट को डाल दी है वस्त्र उत्पाद में, जबकि यह है कृषि उत्पाद, इसको वस्त्र उत्पाद से निकालकर डाला जाए क़ृषि में
जूट उत्पाद से निर्मित कालीनों पर सरकार दे 10 फीसदी प्रोत्साहन राशि, इसके लिए निर्यातको ने उठाई है मांग
प्रस्तुति– आफताब अंसारी
भारत टेक्स-2024 का नई दिल्ली के भारत मंडपम यशोभूमि में 26 फरवरी को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन कर शुरुआत कर दी। चार दिवसीय
यह मेला 29 फरवरी तक चलेगा। भारत टेक्स का पहली बार आयोजन हो रहा है। हालांकि इससे अच्छे व्यापार की उम्मीद की जा रही है। यह फेयर कितना सफल होगा और इससे कितने का व्यापार होगा। यह तो फिलहाल अभी भविष्य के गर्भ में है। लेकिन कालीन नगरी भदोही से बड़े ही उत्साह के साथ कालीन निर्यातक मेले में प्रतिभाग करने के लिए पहुंचे हुए हैं।
फरवरी माह में कालीन निर्यात संवर्धन परिषद द्वारा प्रतिवर्ष नई दिल्ली में इंडिया कार्पेट एक्सपो का आयोजन किया जाता चला आ रहा है। लेकिन इस वर्ष भारत सरकार द्वारा 11 विभिन्न परिषदों को मिलाकर भारत टेक्स का पहली बार आयोजन किया जा रहा। जिसमें कालीन निर्यात संवर्धन परिषद को भी इसमें सम्मिलित किए जाने से अब इंडिया कार्पेट एक्सपो का आयोजन नहीं होगा। हालांकि सीईपीसी का मानना है कि भारत टेक्स भारतीय कालीन निर्यातकों के लिए एक आदर्श मंच साबित होगा। एक ही छत के नीचे 11 काउंसिलों द्वारा अपने प्रोडक्ट को प्रदर्शित किए जाने से उसका लाभ कालीन उद्योग को मिलेगा। जिन देशों में कालीन की पहुंच नहीं थी। उन देशों में बड़े ही आसानी से हम पहुंच बना सकेंगे। लेकिन फिलहाल यह तो आने वाला समय बताएगा। लेकिन मौजूदा समय में कालीन उद्योग वैश्विक मंदी से जूझ रहा है। जर्मनी के हेनोवर शहर में लगने वाले मेले से भारतीय कालीन निर्यातकों की काफी आस लगी रहती थी। लेकिन इस बार का डोमोटेक्स अच्छा नहीं गया। वहीं नोएडा में आयोजित फेयर भी फ्लाप रहा। ऐसे में कालीन निर्यातकों को सिर्फ निराशा हाथ लगी। रसिया-यूक्रेन युद्ध का असर भी कालीन उद्योग पर पडा। लेकिन उससे अधिक असर हमास-इजरायल के बीच के युद्ध ने असर डाला। अमेरिकी, यूरोपीय देशों के साथ ही खाडी देशों से निर्यात आर्डरों में कमी महसूस की गई। वहीं हूती विद्रोहियों के द्वारा समुद्री जहाजों पर किए गए हमलों से समुद्री लाजिस्टिक कंपनियों द्वारा समुद्री मालभाडा में बेतहाशा बढ़ोतरी कर दी गई है। निर्यातकों के पास जो थोड़े बहुत निर्यात आर्डर है। उनको महंगें समुद्री मालभाडा से वह आपूर्ति करने पर विवश हैं। उस पर सरकार द्वारा सुक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम उद्योग पर 43बी में (एच) को जोड़ दिया गया। इसके चलते कालीन निर्यातकों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने लगी है। इस नियम के तहत बिना अनुबंध के 15 दिन व अनुबंध के तहत 45 दिनों के अंदर बिके हुए माल का भुगतान आना जरुरी है। हालांकि कालीन उद्योग की बात करें तो कालीन बनने में लगभग 6 माह लग जाते हैं। वहीं भदोही से मुंबई व मुंबई से अमेरिका व यूरोपिय देशों में माल पहुंचने में एक से डेढ़ माह तक का समय लग जाता है। वहीं आयातकों द्वारा तीन माह से पहले माल का भुगतान नहीं किया जाता। ऐसे में माल तैयार करने से लेकर भुगतान आने तक में 10 से एक वर्ष तक का समय लग जाता है। ऐसे में 45 दिनों के अंदर कालीन निर्यातकों को भुगतान मंगाया जाना संभव नहीं है। हालांकि इसके लिए निर्यात संगठनों द्वारा लड़ाई लड़ी जा रही है। अगर सरकार द्वारा निर्यातकों की मांगे नहीं मानी गई तो भारतीय कालीन का निर्यात 30 से 40 फीसदी से भी अधिक घट सकती है। वैसे सरकार को चाहिए कि ऐसे कानून को कालीन उद्योग पर न थोपा जाए। अगर सरकार वास्तव में कालीन उद्योग को बढ़ाना चाहती है तो कालीन निर्यात पर साढ़े 10 फीसदी ड्रा बैक दे। जैसा कि कांग्रेस की सरकार में निर्यातकों को निर्यात होने वाले माल पर दिया जाता था। प्रदेश सरकार भी निर्यातकों को प्रोत्साहन राशि दें। जैसा कि पहले 5 प्रतिशत प्रोत्साहन राशि पूर्व सरकारों के समय दिए जाते रहें हैं। भदोही में इस समय भारी मात्रा में जूट से बने कालीन उत्पाद का निर्यात किया जा रहा है। जूट एक प्राकृतिक उत्पाद है। जिसे दुर्भाग्यवश कृषि उत्पाद में न रखकर वस्त्र उत्पाद में डाल दिया गया। विदेशों में आयातकों का झुकाव प्राकृतिक उत्पादों की तरफ बड़े ही तेजी के साथ बढ़ता जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत के सबसे बड़े प्रतियोगी चीन, नेपाल, पाकिस्तान व ईरान आदि देश है। इन देशों में जूट का उत्पादन नहीं होता है। जुट से बने कालीन का निर्यात सिर्फ भारत से ही होता है। इस उत्पाद को तैयार कराने में निर्यातकों को काफी समय लग जाता है। ऐसे में उनकी पूंजी भी समाप्त हो जाती है। जूट से निर्मित कालीनों पर 10 फीसदी प्रोत्साहन राशि दिए जाने की मांग निर्यातकों द्वारा उठाई जा रही है। सरकार को चाहिए कि वह जूट कालीन के उत्पाद पर निर्यातकों को 10 फीसदी प्रोत्साहन राशि दे। ताकि निर्यातक उस धनराशि से अपने उत्पाद का विदेशों में ब्रांडिंग कर सकें। वैसे कालीन मेले की शुरुआत हो गई है। पहले दिन तो मेले में कोई खास विदेशी आयातक देखने को नही मिल जिससे निर्यातकों को थोड़ी निराशा हुई और जो दिखे तो वह निर्यातकों के स्टालों पर पहुंचकर पूछताछ की गई। वहीं दूसरे दिन थोड़ा ज्यादा संख्या में विदेशी आयातक मेले में प्रतिभाग करने के लिए पहुंचे।