दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- पारिवारिक अदालतें पक्षों को तलाक लेने के लिए बाध्य नहीं कर सकतीं, यह सलाह भी दी
दिल्ली-एनसीआर
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने पारिवारिक अदालत के आदेश के खिलाफ एक पति की अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि पारिवारिक अदालतें उन पक्षों को तलाक लेने के लिए मजबूर नहीं कर सकती हैं जो परस्पर स्वीकार्य नहीं हैं और उनका दृष्टिकोण सुलहपूर्ण होना चाहिए। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने पारिवारिक अदालत के आदेश के खिलाफ एक पति की अपील को खारिज करते याची ने पत्नी के खिलाफ एमओयू का पालन नहीं करने के लिए उसकी अवमानना याचिका खारिज कर दी गई थी, जिसके तहत वे आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए सहमत हुए थे। 2017 में शादी करने वाले पक्षों ने एमओयू के बाद तलाक की याचिका को प्राथमिकता दी। पहले प्रस्ताव की याचिका को दिसंबर 2020 में अनुमति दी गई थी। अदालतों को उदार होने की जरूरत उच्च न्यायालय ने कहा कि पारिवारिक विवादों में पारिवारिक अदालतों को थोड़ा उदार होना होगा और वाणिज्यिक विवादों पर लागू होने वाले कड़े परीक्षण को ऐसे मामलों में लागू नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति नवीन चावला ने कहा, यह याद रखना चाहिए कि लिखित बयान दाखिल करने का अधिकार बंद करने से संबंधित पक्ष को गंभीर व्यक्तिगत परिणाम भुगतने पड़ सकते है। इसलिए पारिवारिक न्यायालय के दृष्टिकोण को कानून की तकनीक के बजाय पारिवारिक न्यायालय के उद्देश्य द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि जहां पारिवारिक अदालत को पता चलता है कि पक्ष जानबूझकर निर्णय या कार्यवाही की प्रगति में देरी कर रहा है।