दिवाली पर उल्लू की जान को खतरा, वन विभाग ने बढ़ाई निगरानी
दिल्ली-एनसीआर
इस त्योहार पर किदवंतियों और अंधविश्वास के कारण उल्लू की मांग बढ़ जाती है। मोटी कीमत मिलने के लालच में तस्कर उल्लू का शिकार करने पहुंचते हैं। दिवाली से पहले तस्करों की नजर जंगलों पर बढ़ जाती है। इस त्योहार पर किदवंतियों और अंधविश्वास के कारण उल्लू की मांग बढ़ जाती है। मोटी कीमत मिलने के लालच में तस्कर उल्लू का शिकार करने पहुंचते हैं। इस वजह से वन विभाग ने इन दिनों ओखला पक्षी विहार व अन्य वन्य क्षेत्र में पहरेदारी बढ़ा दी है। तंत्रमंत्र के लिए उल्लू की तस्करी की आशंका पर वन विभाग ने आसपास के लोगों और ग्रामीणों को जागरूक किया है। इसके साथ ही उल्लू को मारने और पकड़ने वाले लोगों की सूचना देने को भी कहा। यहां उल्लू की दो प्रजातियां मुआ और घुग्घू पाई जाती हैं। दिवाली पर उल्लू के अंगों से तंत्र-मंत्र के चलते बाजार में इनके अंगों की कीमत बढ़ जाती है। बताया जाता है कि उल्लू के नाखून, आंखें, चोंच और पंखों का इस्तेमाल तंत्र-मंत्र के लिए किया जाता है। अमावस्या की रात में तंत्र-मंत्र को सिद्ध करने का भी अंधविश्वास लोगों में है। उल्लू धन संपदा की देवी लक्ष्मी का वाहन है। वनाधिकारी ने बताया कि तमाम मान्यताओं में उल्लू का जिक्र है और ऐसे में हर साल दिवाली पर लोग उल्लू के शिकार की तलाश में ऐसी जगह पहुंचते हैं, जहां यह सबसे अधिक दिखता है, इसलिए वन विभाग दिवाली पर अलर्ट मोड में आ जाता है। साथ ही तमाम वन क्षेत्रों में वन कर्मियों के लिए अलर्ट अलग से भी जारी किया जाता है। तीन साल की सजा का प्रावधान भारतीय वन्य जीव अधिनियम 1972 की अनुसूची-एक के तहत विलुप्तप्राय जीवों की श्रेणी में शामिल उल्लू संरक्षित प्राणी है। इसका शिकार या तस्करी करने पर कम से कम तीन वर्ष या उससे अधिक सजा का प्रावधान है। रखवाली के लिए टीमें लगाईं दिवाली पर उल्लू के तस्कर सक्रिय हो जाते हैं। तंत्रमंत्र में प्रयोग के लिए लोग इसकी खासी कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं, इसलिए इस त्योहार पर उल्लू की जान पर खतरा रहता है। ऐसे में विभाग द्वारा अलर्ट जारी किया गया है। वन्य क्षेत्रों में इसकी रखवाली के लिए टीमें लगाई गई हैं। जिन क्षेत्रों में यह सबसे ज्यादा दिखता है, वहां वन विभाग के कर्मी गश्त कर रहे हैं। – प्रमोद कुमार, वनाधिकारी