भारतीय मिशनों के कार्यक्रमों में लगातार उठ रही ‘वंदे मातरम्’ की गूंज

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भारतीय मिशनों के कार्यक्रमों में लगातार उठ रही ‘वंदे मातरम्’ की गूंज

नई दिल्ली। राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने पर दुनिया भर के विभिन्न देशों में भारतीय दूतावासों, उच्चायोग और महावाणिज्य दूतावासों द्वारा जश्न मनाया गया, जिसमें सामूहिक गायन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और सामुदायिक समारोह आयोजित किए गए। ये कार्यक्रम प्रवासी भारतीयों में एकता और राष्ट्रीय गौरव की भावना को बढ़ावा देने के लिए किए गए, जिसमें वॉशिंगटन, ओटावा, दोहा, रियाद, कैनबरा, बाली, लंदन, जर्मनी, स्टॉकहोम, हरारे, मलावी और काहिरा के साथ ही सूरीनाम की राजधानी पारामारिबो, सूडान की राजधानी खार्तूम और अल्बानिया की राजधानी तिराना जैसे कई स्थानों पर भव्य समारोह आयोजित हुए।
इस दौरान भारतीय मिशनों की ओर से रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया, जिनमें भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की नायाब झलक देखने को मिली। वैंकूवर स्थित भारतीय महावाणिज्य दूतावास ने 12 नवंबर को ‘एक्स’ पर लिखा, भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया। यह गीत भारत के स्वतंत्रता संग्राम की धड़कन और हमारी मातृभूमि के लिए एक शाश्वत स्तुति बन गया। प्रवासी भारतीय भी सामूहिक गायन में शामिल हुए, जिसमें वंदे मातरम् की एकता, देशभक्ति और भक्ति की भावना प्रतिध्वनित हुई। पीएम नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय गीत की 150वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में साल भर जारी रहने वाले स्मरणोत्सव का उद्घाटन किया था। देशभर के स्कूल-कॉलेजों के साथ ही सरकारी एवं निजी संस्थानों में इस दिवस को धूमधाम से मनाया गया। यह जश्न यहीं नहीं रुका, बल्कि देश की सीमाओं को पार कर गया और इसके बाद से विदेशों में आयोजित किए जा रहे कार्यक्रमों की लगातार खबरें आ रही हैं। भारतीय मिशन ‘एक्स’ और अन्य सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से लगातार कार्यक्रमों की तस्वीरें साझा कर रहे हैं। मेलबर्न स्थित भारत के महावाणिज्य दूतावास ने 12 नवंबर को ‘एक्स’ के माध्यम से सालभर चलने वाले इस जश्न में शामिल होने की अपील करते हुए कहा इस उत्सव का हिस्सा बनें। उल्लेखनीय है कि 7 नवंबर 1875 को अक्षय नवमी के शुभ अवसर पर बंकिम चंद्र चटर्जी ने राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ की रचना की थी और यह पहली बार उनके उपन्यास आनंदमठ में क्रमबद्ध तरीके से प्रकाशित हुआ। बाद में 1882 में यह एक स्वतंत्र पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ। हाल ही में राष्ट्रीय कार्यान्वयन समिति ने 7 नवंबर 2025 से 7 नवंबर 2026 तक पूरे वर्ष इसे उत्सव के तौर पर मनाने को मंजूरी दी थी।

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