आयुर्वेद से अल्जाइमर्स का बेहतर प्रबंधन और इलाज संभव, 60 साल से ऊपर के 7.4 फीसदी लोग प्रभावित
दिल्ली
इसमें समय बीतने के साथ-साथ रोगी की शारीरिक और मानसिक हालत गिरती चली जाती है। आखिरी स्टेज में मरीज अपनी देखभाल खुद करने में असमर्थ हो जाता है और उसकी सोचने-समझने की शक्ति जवाब दे जाती है। आयुर्वेद की पंचकर्मा थेरेपी के साथ-साथ अश्वगंधा, जटामांसी, ब्राह्मी, मंडूकपर्णी, शंखपुष्पी, वच, हल्दी, तुलसी, गिलोय आदि आयुर्वेदिक दवाएं अल्जाइमर की चिकित्सा में प्रभावी सिद्ध हो सकती हैं। अल्जाइमर्स का आयुर्वेद से बेहतर प्रबंधन और इलाज संभव है। इसमें समय बीतने के साथ-साथ रोगी की शारीरिक और मानसिक हालत गिरती चली जाती है। आखिरी स्टेज में मरीज अपनी देखभाल खुद करने में असमर्थ हो जाता है और उसकी सोचने-समझने की शक्ति जवाब दे जाती है। आयुर्वेद की पंचकर्मा थेरेपी के साथ-साथ अश्वगंधा, जटामांसी, ब्राह्मी, मंडूकपर्णी, शंखपुष्पी, वच, हल्दी, तुलसी, गिलोय आदि आयुर्वेदिक दवाएं अल्जाइमर की चिकित्सा में प्रभावी सिद्ध हो सकती हैं। अल्जाइमर्स रोग की शुरुआत मस्तिष्क के सेल्स व तंत्रिकाओं के नष्ट होने के कारण होती है और समय बीतने के साथ-साथ मरीज की शारीरिक और मानसिक स्थिति बिगड़ती चली जाती है। दिल्ली नगर निगम के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (आयुर्वेद) डॉ. आरपी पाराशर ने बताया कि रसराज रस, महावातविध्वंसक रस, वातगजांकुश रस सहित अन्य दवाएं मांसपेशियों और तंत्रिकाओं को मजबूत बनाती हैं। शिरोधारा नामक पंचकर्म थेरेपी मस्तिष्क के सेल्स को नष्ट होने से बचाने में महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है। इसके अंतर्गत दवाओं से सिद्ध तेल धीरे-धीरे मस्तिष्क और सिर पर टपकाए जाते हैं। 60 साल से ऊपर के 7.4 फीसदी लोग प्रभावित डॉ रविंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि रिसर्च के मुताबिक भारत में 60 साल से ऊपर के 7.4 फीसदी लोग डेमेंशिया से प्रभावित हैं। एक अन्य रिसर्च के मुताबिक़, जो लोग कोविड की चपेट में आये हैं वे लोग कोविड निगेटिव लोगों की तुलना में अल्जाइमर और डेमेंशिया जैसी मानसिक बीमारियों से पीड़ित होने के ज्यादा ख़तरे पर हैं। महामारी और महामारी के बाद कमजोर इम्युनिटी ने भी इस तरह की बीमारियों के चपेट में आने की संभावना को बढ़ा दिया है।